II दोहा II
श्रीगुरु चरन सरोज रज,निजमन मुकुरु सुधारि। बरनउँ रघुबर बिमल जसु ,जो दायक फल चारि ।।
बुद्धिहीन तनु जानिके , सुमिरौं पवन-कुमार । बल बुद्धि विद्या देहु मोंहि , हरहु कलेश बिकार ।।
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर। जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ।।
राम दूत अतुलित बल धामा। अंजनी पुत्र पवनसुत नामा।।
महाबीर बिक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी।।
कंचन बरन बिराज सुबेसा। कानन कुण्डल कुंचित केसा।।
हाथ बज्र और ध्वजा विराजे ।। कांधे मुंज जनेऊ साजै।।
शंकर स्वयं केसरीनन्दन । तेज प्रताप महा जगबंदन ।।
विद्यावान गुनी अति चातुर।। राम काज करिबे को आतुर ।।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रशिया ।। राम लखन सीता मन बसिया।।
सूक्ष्म रूप धरी सिंयहि दिखावा।। विकट रूप धरी लंक जरावा।।
भीम रूप धरी असुर संहारे।। रामचंद्र के काज सवाँरे।।
लाय संजीवन लखन जियाये।। श्री रघुबीर हरषि उर लाये।।
रघुपति किन्ही बहुत बड़ाई।। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।
सहस बदन तुमरो यश गावे।। असकहि श्रीपति कंठ लगावे।।
सनकादिक ब्रम्हादिक मुनीसा।। नारद सारद सहित अहीसा।।
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते।। कबि कोविद कही सके कहाँ ते।।
तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा।। राम मिलाय राज पद दीन्हा।।
तुमरो मन्त्र बिभीषन माना।। लंकेश्वर भए सब जग जाना।।
जग सहस्त्र योजन पर भानु।। लील्यो ताहि मधुर फल जणू ।।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही।। जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं।।
दुर्गम काज जगत के जेते।। सुगम अनुग्रह तुमरे तेते ।।
राम दुआरे तुम रखवारे ।। होत न आज्ञा बिनु पैसारे ।।
सब सुख लहैं तुम्हारी सरना।। तुम रक्षक काहू को डरना।।
आपन तेज सम्हारो आपै।। तीनो लोक हांकते काँपे।।
भूत पिचास निकट नहीं आवै।। महावीर जब नाम सुनावे।।
नासै रोग हरे सब पीरा।। जपत निरंतर हनुमत बीरा।।
संकट ते हनुमान छुड़ावे।। मन क्रम बचन ध्यान जो लावे।।
सब पर राम राज सिर ताजा।। तिनके काज सकल तुम साजा।।
और मनोरथ जो कोई लाबे।। सोइ अमित जीवन फल पावै।।
चारो जुग परताप तुम्हरा।। है प्रसिद्ध जगत उजियारा।।
साधु संत के तुम रखवारे।। असुर निकंदन राम दुलारे।।
अष्ट सीधी नौ निधि के दाता।। अस बर दिन जानकी माता।।
राम रसायन तुम्हरे पासा।। सादर हो रघुपति के दसा।।
तुम्हरे भजन राम को पावै।। जनम जनम के दुःख बिसरावे ।।
अंतकाल रघुबरपुर जाइ।। जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई।।
और देवता चित्त न धरई।। हनुमत सेई सर्ब सुख करइ।।
संकट कटै मिटै सब पीरा।। जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ।।
जय जय जय हनुमान गोसाईं।। कृपा करहुं गुरुदेव की नाइ।।
जो सतबार पाठ कर कोई।। छूटहि बंदी महा सुख होइ।।
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।। होय सीधी साखी गौरीसा।।
तुलसीदास सदा हरी चेरा।। कीजै नाथ हृदय महँ डेरा।।