One Nation One Election

 

One Nation One Election

1.One Nation One Election क्या है ?

“एक देश एक चुनाव” या “one nation one election” का सीधा सा अर्थ है , राज्यों के विधानसभा चुनाव और देश  के लोकसभा चुनाव को  एक साथ एक ही समय पर कराया जा सके।

2.क्या पहली बार भारत में One Nation One Election की चर्चा शुरू हुई है ?

जी नहीं , देश आज़ाद होने के बाद सन्न 1952,1957,1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ ही होते थे , लेकिन 1968 और 1969 में कई विधानसभाएं समय से पहले ही भंग कर दी गयी और यह शिलशिला भी खत्म हो गया ।

2014 में जब बीजेपी सत्ता में आयी तो “one nation one election” की चर्चा फिर शुरू हुई । मोदी जी ने 2019 में सभी पार्टियों के साथ एक बैठक भी की थी हालाँकि कई पार्टियों ने तब भी विरोध किया था इस विचार का ।

सितम्बर 2023 में केंद्र सरकार ने 8 सदस्यीय कमिटी का गठन किया जो one nation one election  पर मंथन करके किसी नतीजे पर पहुंचेगी , जिसके अध्यक्ष हमारे पूर्व राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद जी होंगे , बाकि के सदस्य में   अमित शाह , अधीर रंजन चौधरी , गुलाम नबी आज़ाद , एन के सिंह , सुबाष कश्यप , हरीश साल्वे और संजय कोठारी।

3.One Nation One Election से देश को क्या लाभ होगा ?

देश का पैसा बचेगा –  यदि देश में एकसाथ चुनाव होंगे , तो सरकारी खजाने पर जो बोझ परता है उसमे कमी आएगी, चुनाव खर्च में हो रही वृद्धि इस बात का इशारा है की समय रहते कुछ ठोस कदम उठाया जाये और इस खर्च को कम किया जाये ।

आदर्श आचार संहिता – देश में बार- बार चुनाव होने से हर बार “आदर्श आचार संहिता” लागू करनी पड़ती है , जिससे विकास कार्य बाधित होता है , क्योकि आदर्श आचार संहिता जबतक लागू रहेगी तबतक न तो सरकार किसी परियोजना की घोषणा कर सकती है , न ही वित्तीय मंजूरी और नियुक्तियों तक पर रोक लग जाता है । इसके पीछे की वजह यह है की माजूदा सरकार को चुनाव में अतिरिक्त लाभ न मिल सके। इसलिए अगर  एक बार चुनाव होगा तो देश भर में एक बार ही आदर्श आचार संहिता लागू होगा जिससे निर्विरोध बाकि कार्य पूरा हों सकेगा।

उदाहरण – ओडिशा में 2004 के बाद से चारो विधानसभा के चुनाव , लोकसभा चुनाव के साथ हुए है , जिसके चलते ओडिशा में आदर्श आचार संहिता बार बार लागू करने की जरुरत नहीं पड़ती है , जिससे ओडिशा सरकार के काम में दूसरे राज्य सरकारों की तुलना में कम खलल पड़ता है । तो  one nation one election इस संधर्व में सटीक बैठ रहा है।

काले धन और भ्रष्टाचार पर रोक –  चुनाव में काले धन और भ्रस्टाचार ने जिस तरह अपने पैरो को पसारा है यह बात आज किसी से छुपी नहीं है , चुनाव प्रचार के दौरान भी राजनितिक दलों और प्रत्याशी द्वारा खुलके काले धन का उपयोग किया जाता है , हालाँकि एक प्रत्याशी के चुनावी खर्च की सीमा तो तय की गयी है पर राजनीतक दलों के खर्च सीमा को तय नहीं किया गया है ।

सरकारी कर्मचारी और सुरक्षाबलों के कार्यो में बाधा – बार बार चुनाव कराने के लिए सरकारी कर्मचारियों जिसमे स्कूली शिक्षक और सुरक्षाबलों की बार बार चुनाव में ड्यूटी दी जाती है जिससे चुनाव तो संपन्न हो जाता  है परन्तु उन्हें अपने कर्तब्यो और कार्यो से समझौता करना पड़ता है , जहा वो मौजूदा समय में तैनात होते है ।

4.One Nation One Election के विरोध के पीछे की असली कहानी ?

चुनाव 5 साल में एक बार होगा तो सरकार के मन में स्थायित्वा का भाव आने लगेगा , जनता के प्रति उन्हें जिस तरह का अभी एक जागरूकता का भाव होता है की अगर लोकसभा चुनाव के बाद भी सत्ता पक्ष ने अच्छा काम नहीं किया तो विधानसभा के चुनाव के समय  में दिक्कत होगी।

देश के सामने कई ऐसे भी माहौल आएंगे जहा पर “one nation one election” फिट नहीं बैठ रहा , जैसे अनुछेद 2  के अनुसार संसद द्वारा किसी नए राज्य को भारतीय संघ में शामिल किया जा सकता है या अनुछेद 3 द्वारा संसद कोई नया राज्य बना सकती है , तो ऐसी स्तिथि में चुनाव फिर से उस राज्य में कराने होंगे ।

अनुछेद 352 के अनुसार गृह युद्ध जैसी परिस्थिति में या बाहरी आक्रमण जैसी घड़ी में राष्ट्रीय आपातकाल लगाकर लोकसभा का कार्यकाल को बढ़ाया जा सकता है ।

अनुछेद 356 के अनुसार राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है और ऐसे में उस राज्य में राजनितिक समीकरण बिगड़ने पर फिर से चुनाव कराया जा सकता है ।

लोकसभा और विधानसभा के चुनाव का स्वरुप और मुद्दे बिलकुल अलग अलग होते है , क्योकि लोकसभा के चुनाव जहा राष्ट्रीय सरकार के गठन के लिए होते है वही विधानसभा के चुनाव राज्य सरकार को चुनने क लिए होते है । लोकसभा चुनाव में जहा राष्ट्रीय मुद्दों को ऊपर रखा जाता है वही विधानसभा  के चुनाव में लोकल मुद्दे को प्राथमिकता दी जाती है, अब अगर देश में एक साथ चुनाव कराये गए तो ये संभव है की राष्ट्रीय मुद्दों के सामने लोकल मुद्दे कमजोर पर सकते है या इसके विपरीत यह भी संभव है की राष्ट्रीय मुद्दे लोकल उलझनों से प्रभाबित हो जाये ।

5.One Nation One Election पर क्या है विधि आयोग का रुख ?

हाल ही में विधि आयोग ने one nation one election  के मामले में विभिन्न राजनितिक दलों, लोकल पार्टीयो , तथा प्रसाशनिक अधिकारियो की राय जानने के लिए 3 दिवसीय कांफ्रेंस का आयोजन किया था। इस कांफ्रेंस में कुछ राजनितिक दलों ने one nation one इलेक्शन के विचार  का स्वागत किया वही अधिकांश राजनितिक पार्टिया विरोध करती नजर आयी और दलील इनका ये था की ये संवैधानिक विचारो के विरुद्ध है ।

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